क्या निजीकरण हेतु, ट्रान्जेक्शन कन्सलटैन्ट बदलना ही अब सेवानिवृत्त कार्मिकों एवं सरकार के बीच एकमात्र अवरोध रह गया है?

मित्रों नमस्कार! दि0 09.04.25 को निजीकरण के विरोध में राजधानी लखनऊ में आयोजित एक सफल रैली के बावजूद, ऊर्जा प्रबन्धन एवं प्रदेश सरकार पर रत्तीभर भी प्रभाव दिखलाई न देना, बेबाक के उक्त कथन को, कि निजीकरण के विरोध में शनैः शनैः चलाया जाने वाला आन्दोलन पूर्णतः प्रायोजित है, प्रमाणित होता है।

उपरोक्त कथित आन्दोलन अब इस बात की ओर मुड़ गया है कि नियुक्त ट्रान्जेक्शन कन्सलटैन्ट को झूठा शपथ पत्र देने के कारण हटाया जाये तथा इस सम्बन्ध में प्रदेश के उप मुख्यमन्त्री को ज्ञापन सौंपा गया है। अर्थात वर्तमान ट्रान्जेक्शन कन्सलटैन्ट को हटाकर, यदि कोई दूसरा ट्रान्जेक्शन कन्सलटैन्ट नियुक्त कर दिया जाये, तो इन्हें मान्य होगा तथा इन्हें निजीकरण की प्रक्रिया से कोई आपत्ति नहीं है।

यक्ष प्रश्न उठता है कि आखिर एक सफल रैली का क्या परिणाम रहा? इसी आन्दोलन के समानान्तर एक अन्य आन्दोलन चल रहा है, विभागीय संयोजनों पर स्मार्ट मीटर लगाने का तथा जगह-जगह विरोध जताया जा रहा है। जिसमें मजेदार तथ्य यह है कि विभागीय संयोजनों पर मीटर लगवाने के लिए, विभागीय अधिकारी ही संकल्पबद्ध हैं। उपरोक्त कथित मोर्चा के संयोजक, जिनका मूल उद्देश्य ही सदा अपने मातृ संगठन के सदस्यों के हित के अतिरिक्त कभी भी कुछ अन्य करना नहीं रहा है। जिन्होंने कभी भी किसी अन्य के साथ हाथ मिलाया, तो सिर्फ और सिर्फ अपने सदस्यों के हितों के लिये मिलाया। इन्होंने सदैव ही अन्य संगठनों के समर्थन का बखूबी अपने एवं अपने सदस्यों के हितों के लिये प्रयोग किया।

जहां यह इनकी कूटनीतिक योग्यता का प्रमाण है, तो अन्य संगठनों के पदाधिकारियों की कूटनीतिक अज्ञानता का परिचायक भी है। इनके द्वारा ऊर्जा निगमों के गठन के उपरान्त, अपने साथियों को निदेशक बनवाने के एवज में MoA लागू न कराने का जो अघोषित समझौता, सरकार एवं सरकार द्वारा नियुक्त तथाकथित वायसरायों के साथ किया था। वह आज इनकी सबसे बड़ी कूटनीतिक हार बन चुकी है। जिसके ही कारण ऊर्जा निगमों के इन्जीनियर, इन्जीनियर के स्थान पर, इ(शून्य) 0 बनकर रह गये हैं। अर्थात आज उनमें इन्जीनियरिंग का कोई भी ज्ञान शेष नहीं रह गया है। जिसके कारण अब स्थिति यह है, कि बाहरी कम्पनियों के बालक आते हैं और लिफाफा थमाकर कार्य समापन का प्रमाण पत्र लेकर चले जाते हैं। अब विभागीय इन्जीनियर इ(शून्य) होकर सामग्री निर्माताओं एवं वाह्य कार्यदायी संस्थाओं के कमीशन के आधार पर मात्र मार्केटिंग एजेंट बनकर रह गये हैं। अब इ0 के माध्यम से, ये कोई भी चुनौती देने के योग्य नहीं बचे हैं।

आज की वास्तविकता यह है कि अधीक्षण अभियन्ता एवं मुख्य अभियन्ताओं की तो निगमों में कोई आवश्यकता ही नहीं रह गई है। आज लगभग सभी कार्य, वाह्य कार्यदायी संस्थायें कर रही हैं। जिसके ही कारण निदेशक मण्डल के लिये, प्रबन्धन की पहली पसन्द विभागीय अभियन्ताओं के ऊपर बाहरी लोग हो चुके हैं। वैसे तथाकथित सेवानिवृत्तों के श्रद्धेय की उपलब्धियों की लम्बी कहानी है, जिसका पूर्ण वर्णन यहां कर पर संम्भव नहीं है। बस इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के विघटन से लेकर आगरा और नोएडा में निजी कम्पनियों के प्रवेश में इनका विशेष योगदान रहा है। इनके द्वारा आहूत विभिन्न आन्दोलनों के माध्यम से, सरकार की ईच्छानुरुप तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 एवं क्षेत्र में, विघटन एवं निजीकरण का कार्य सफलतापूर्वक कराया गया।

सरकार एवं उसके द्वारा नियुक्त कथित वायसराय बहुत अच्छी तरह से यह जानते हैं कि विभिन्न संवर्गों के बीच खाई बनाये रखना कितना आवश्यक है। जिसके लिये उसने अभियन्ता अधिकारियों के कन्धों पर ही रखकर वरिष्ठता, पदोन्नत्ति एवं वेतनमान की विसंगतियों को आज तक बनाये रखा है। आज MoA के विरुद्ध नियुक्त कथित वायसरायों की यह कूटनीतिक सफलता है, कि उनके द्वारा निदेशक पदों पर नियुक्त, कथित मोर्चा के सदस्यों को पालतू बना लिया है। जिसका जीता जागता प्रमाण है कि विभागीय कार्मिकों को प्रदान विद्युत सुविधा LMV-10 पूर्णतः समाप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है और निदेशक मण्डल में बैठे कथित पालतू अभियन्ता निदेशक, नमक का कर्ज उतारने के नाम पर विभागीय संयोजनों पर स्मार्ट मीटर लगाने का दबाव बना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के विघटन के उपरान्त, कार्मिक संगठनों के साथ हुये समझौते की याद दिलाते हुये, विभागीय संयोजनों पर स्मार्ट मीटर लगाने का उन्हीं के संगठन द्वारा बढ़-चढ़ कर विरोध की औपचारिकता निभाई जा रही है। क्योंकि जब वर्ष 2018 में नियामक आयोग द्वारा LMV-10 विद्या को समाप्त किया गया तथा उ0प्र0पा0का0लि0 के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2010 से ”सांख्यिकी एक दृष्टि में“ प्रकाशित अभिलेख में श्रेणीवार उपभोक्ताओं की सूची से LMV-10 विलोपित कर दिया गया है। जिसे करने वाले भी विभागीय अधिकारी ही हैं। परन्तु कभी भी किसी भी स्तर कोई विरोध ही नहीं किया गया।

आज स्थिति यह हो गई है कि ऊर्जा निगमों के गठन के उपरान्त निदेशक पदों पर अपने सदस्यों की नियुक्ति कराने को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानने वाले तथाकथित ”श्रधेय“ निदेशक मण्डल में बैठे अपने सदस्यों से LMV-10 की सुविधा को बहाल करने हेतु प्रस्ताव पारित कराने का निर्देश देने की भी स्थिति में नहीं हैं। कारण स्पष्ट है कि अब निदेशक पदों पर अभियन्ता, इनके रहमोकरम पर न होकर, अपनी जोड़तोड़, गिन्नियों का खेल जीतकर एवं पालतू बनने की ही शर्त पर सीधे पहुंच रहे हैं। जिनका मूल कार्य ही सिर्फ श्ल्मे ैपतश् कहना है। जहां तक LMV-10 की बात है तो प्रदेश में लगभग एक लाख वैध विभागीय संयोजन हैं तथा सम्भवत 50000 अवैध संयोजन हैं। जोकि विद्युत उपकेन्द्रों पर नियुक्त संविदाकर्मियों एवं अपने ग्रह जनपद से दूर अन्य क्षेत्र अथवा डिस्कामों में नियुक्त अधिकारियों के मूल निवास स्थान के अतिरिक्त वर्तमान नियुक्ति स्थान पर चल रहे हैं। ऐसे बहुत सारे अधिकारी हैं जिनके अलग-अलग जनपदों में मकान हैं और वहां पर उनकी नेम प्लेट ही अवैध संयोजनों को वैध बना रही हैं। LMV-10 के कथित संयोजनों पर लगभग एक लाख मीटर की कीमत लगभग 50 करोड़ है, जिसके पीछे हिस्सेदारी का खेल छिपा हुआ है। अतः मीटर लगेंगे, तभी भुगतान होगा और हिस्सेदारी वितरित होगी।

सारांश सिर्फ इतना है कि कथित श्रद्धेय का एकमात्र उद्देश्य ऊर्जा निगमों का सुगमता से निजीकरण कराना है। जिसका स्पष्ट घोतक है निजीकरण के नाम पर ऊर्जा प्रबन्धन का विरोध कर कार्मिकों को भ्रमित करना है। जबकि सर्वविदित है कि ऊर्जा निगम जोकि सार्वजनिक उद्योग हैं, जिनके निजीकरण करने अथवा कराने की शक्ति ऊर्जा प्रबन्धन के पास नहीं है। सर्वविदित है कि निजीकरण को रोकने की कुंजी सिर्फ और सिर्फ हमारे माननीय प्रधानमन्त्री जी के पास है और उन्हें यह बखूबी पता है, कि हम सभी कितने आदर्शवादी, कर्मठ एवं ईमानदार हैं। अतः निजीकरण के विरोध में चलाया जाने वाला आन्दोलन पूर्णतः भ्रमित करने वाला है। जिसका मूल उद्देश्य ही ”कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना है“। क्रमशः ….

राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA M.No. 9868851027.

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