कल उत्तर प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2024-25 के लिये स्थानान्तरण नीति जारी की गई। जो कि पिछले कई वर्षों से घोषित स्थानान्तरण नीति की ही एक नकल मात्र है। यदि इसमें कुछ है तो वह है कि सर्वाधिक समय से कार्यरत अधिकारियों के स्थानान्तरण पहले किये जायेंगे। प्रति वर्ष सरकार अपने कार्मिकों के लिये एक स्थानान्तरण नीति घोषित करती है। जिसके आधार पर अन्य सरकारी उपक्रम भी अपनी स्थानान्तरण नीति घोषित करते हैं। जोकि शासन द्वारा घोषित नीति की ही लगभग नकल मात्र ही होती है।
पिछली सभी स्थानान्तरण नीतियों का यदि अवलोकन करें, तो उनमें सभी में यह बिन्दु होता है कि कार्यरत कार्मिकों के 20% से अधिक स्थानान्तरण नहीं किये जायेंगे, जोकि प्रणाली के सुगम संचालन के लिये अनिवार्य भी है। परन्तु यही 20% की निर्धारित सीमा, स्थानान्तरण नीति को निष्प्रभावी बनाने के लिये, एक कुंजी के समान है। क्योंकि सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार और काम चोरी का मूल आधार ही ”अपने ही इच्छित स्थान और अपनी ही शर्तों पर कार्य करने का संकल्प“ हैं। जिसकी पूर्ति कतिपय राजनीतिक सम्बन्ध एवं धन के द्वारा उन्हें 20% की निर्धारित सीमा से बाहर करके की जाती है।
यही कारण है कि स्थानान्तरण नीतियां आती रहती हैं और काबिल लोग उपरोक्त युक्तियों का यथोचित प्रयोग कर, मलाईयुक्त स्थानों पर जमे रहते हैं। स्थानान्तरण नीति घोषित होने से पूर्व ही, स्थानान्तरण एवं नियुक्ति कराने के लिये मशहूर लोग दुकान खोलकर बैठ जाते हैं तथा मोलभाव आरम्भ कर देते हैं। सम्भावित ग्राहकों को पहले से ही अवगत करा दिया जाता है कि उनका नाम स्थानान्तरण सूची में है और उन्हें उनकी इच्छानुसार उपाय बता दिये जाते हैं। क्षेत्र के नेताओं के लिये यह मजबूरी है कि वे उनके वोटर हैं, जिनके माध्यम से उनकी राजनीति चलती है और यह सभी जानते हैं कि आज आदर्शों से राजनीति नहीं चलती। बल्कि आज आदर्श राजनीति के कार्यक्षेत्र से बड़ी तेजी से अप्रचलित (Outdated) होकर, वापस पुस्तकों में धूल खाने लगे हैं। जिनकी चर्चा करना भी अब समय की बर्बादी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। आज व्यवहार एवं व्यवहारिकता के मायने पूर्णतः बदल चुके हैं।
नान्तरणकर्ता के लिये भी स्पष्ट रुप से यह मजबूरी होती है कि उसे खुद अपनी कुर्सी बचानी होती है, (कुर्सीः व्यवहार में जिसके बहुत सारे पर्यायवाची होते हैं) यही कारण है कि कुर्सी के लिये उच्चाधिकारी/नेताजी को नाराज करना उनके लिये सम्भव नहीं होता। यहां पर चिकित्सा के आधार पर होने वाले स्थानान्तरण एवं नियुक्ति पर चर्चा करना आवश्यक है क्योंकि कुछ लोग चिकित्सा के आधार पर एक ही स्थान पर कई-कई संवेदनशील मलाईदार पदों पर बने हुये हैं। कहने के लिये इन्हें डाक्टर के द्वारा इनके इच्छित शहर से बाहर जाने के लिये मना किया हुआ होता है। परन्तु ये सामग्री निर्माता/आपूर्तिकर्ताओं के हितों के लिये लगातार दूर-दूर जाकर, महत्वपूर्ण सामग्रियों के निरीक्षण करने में लगे रहते हैं। वहीं दूसरी ओर निष्ठावान लोग न चिकित्सा का बहाना बनाते हैं और न ही कोई अनुरोध करते हैं बल्कि सीधे वी.आर.एस. की मांग कर घर चले जाते हैं।
पिछले दिनों का ही एक किस्सा है कि ईश्वर के चमत्कार से उर्जा निगमों पर एक ईमानदार अधिकारी नियुक्त हो गया। जिसके कारण वर्षों से स्थायी रुप से चल रहा स्थानान्तरण उद्योग बन्द हो गया। उद्योग में लगे अदृश्य एवं दृश्य दोनों ही प्रकार के लोग बेरोजगार हो गये। जिसके कारण ”अपने ही इच्छित स्थान और अपनी ही शर्तों पर कार्य करने के लिये संकल्पित“ लोगों को अपने-अपने स्थान छोड़ने ही नहीं पड़े बल्कि उनमें ऐसी भगदड़ मची कि वे नौकरी तक छोड़-छोड़ कर भागने लगे। जिसके बाद भी उनके लिये नौकरी बचाना मुश्किल हो गया था। जिसके निदान के लिये कतिपय कार्मिक संगठनों के विशेषज्ञ भीष्म पितामह एवं स्थानान्तरण एवं नियुक्ति उद्योग के बेरोजगार लोग रात-दिन प्रशासनिक एवं राजनीतिक गलियारों के चक्कर काटते हुये एड़ी-चोड़ी का जोर लगाते हुये नजर आये। इन भीष्म पितामह के पिछलग्गू बन, तरह-तरह के गठजोड़ कर सभी जतन किये, परन्तु अन्ततः निलम्बित होकर नौकरी तक खोने के कगार पर पहुंच गये। ऐसा भी नहीं है कि चोर-उचक्कों के लिये भययुक्त उक्त साम्राज्य में किसी को मलाई न मिली हो, कुछ बगुलाभक्तों ने वहां भी हाथ साफ किये। चूंकि हर चीज का एक समय होता है।
धीरे-धीरे चुनाव का आता समय, ईमानदारी की घुन से ग्रसित तथाकथित कुर्सी से परेशान प्रशासनिक एवं राजनीतिक गलियारे को अन्ततः उक्त कुर्सी से तथाकथित घुन निकालने के लिये ऊपर वाले का आशीर्वाद प्राप्त हुआ तथा एक एतिहासिक घटना के तहत चहुं ओर, विशेषतः “अपने ही इच्छित स्थान और शर्तों पर कार्य करने के लिये संकल्पित लोगों”, स्थानान्तरण उद्योग के बन्द होने से बेरोजगार लोगों, सामग्री निर्माता एवं आपूर्तीकर्ताओं की विभाग में मार्केटिंग करने वाले अभियन्ताओं एवं ठेकेदारों के द्वारा घोर अन्धेरे में, प्रकाश की एक किरण देखकर, जमकर मिठाईयां बांटी एवं जश्न मनाया गया। अन्ततः ”अपने ही इच्छित स्थान और शर्तों पर कार्य करने के लिये संकल्पित“ लोगों के दिन फिर गये और सभी अपने-अपने इच्छित स्थानों पर वापस चले गये। चूंकि किसी को भी अपनी कुर्सी के नीचे कोई शोर पसन्द नहीं होता।
अतः पिछले राज्य में पकड़े गये बड़े-बड़े चूहे, जिन्होंने कुर्सी से तथाकथित घुन निकालने में जयचन्द का रोल बखूबी पूर्ण निष्ठा के साथ अदा किया था, आज भी पिंजरे से बाहर निकलने के लिये छटपटा रहे हैं। तथाकथित विशेषज्ञ भीष्म पितामहों ने भी अपने बचे-कुचे सम्मान की रक्षा के लिये, कटु मिले अनुभवों के आधार पर, अप्रत्यक्ष रुप से तटस्थ बनने का निर्णय ले चुके हैं। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कार्मिक संगठन लगभग मरणासन्न अवस्था में पहुंच चुके हैं और कार्मिकों के हितों की बात करने का साहस करने वाला कोई नहीं बचा। एक ही व्यक्ति से तरह-तरह के कार्यों की अपेक्षा की जा रही हैं। जोकि वास्तविक एवं व्यवहारिक रुप से धरातल पर सम्भव ही नहीं है। परन्तु चमत्कारिक रुप से सभी कार्य हो रहे हैं। लगातार सभी छुट्ठियां निरस्त कर, बन्धुआ मजदूर की परिकल्पना को यथार्थ रुप दिया जा रहा है। खैर, प्रायः यह देखा गया है कि ज्यादातर विभाग के प्रति निष्ठावान लोगों पर ही सभी नियम-कायदे एवं नीतियां लागू होती हैं अन्यथा हजार अपराध के बाद भी सिर्फ कुर्सी के पाओं को सम्भालने वाले लोग ही सम्मानित कहलाते हैं। रोचक होगा यह जानना कि पिछले साम्राज्य में हटाये गये लोगों के कारण विभाग को क्या हानि हुई थी और अब उनके उन्हीं स्थानों/डिस्काम/शहरों/मुख्यालय पर वापस आने से विभाग को क्या लाभ हुआ? राष्ट्रहित में समर्पित!
जय हिन्द!
बेवाक रिपोर्ट – बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA.








