
आये दिन विद्युत दुर्घटनाओं में होने वाली निर्दोष प्राणियों की हृदयविदारक अकाल मृत्यु, जिसमें जन जीवन के साथ-साथ उर्जा निगमों के कार्मिक भी आये दिन घातक विद्युत दुर्घटनाओं की चपेट में आते रहते हैं। जिसके बाद पुरानी प्रथानुसार, दबाव के आधार पर कुछ लोगों को WELFARE ASSOCIATION UTTAR निलम्बित कर, अपने – अपने उत्तरदायित्वों की इतिश्री कर दी जाती है। कुछ माह बाद लीपा-पोती के सहारे, सब अपने-अपने कार्य पर पूर्व की भांति लग जाते हैं। परन्तु जिसका परिवार उजड़ गया, वो बेचारा विभिन्न कार्यालयों के चक्कर काटते-काटते, न्याय की तलाश में भटकता रहता है।
प्रश्न उठता है कि आखिर इस प्रकार की घटनाओं की बार-बार पुनरावृति क्यों होती हैं, इनसे सबक लेकर, इनकी रोकथाम क्यों नहीं होती, इन दुर्घटनाओं के मूल कारण क्या हैं और उनके लिये कौन – कौन उत्तरदायी हैं ? दि० 11.03.24 को गाजीपुर में एक बस के 11KV विद्युत लाईन के सम्पर्क में आने के कारण अनगिनत लोग हृदयविदारक अकाल मृत्यु को प्राप्त हुये ।
उक्त हृदयविदारक घटना के 3 मूल कारण हैं:-
- 1- विद्युत लाईन के नीचे कोई गार्डिंग नहीं होना।
- 2 – विद्युत लाईन सुरक्षा के मानकों के अनुसार जमीन से निर्धारित ऊंचाई से बहुत नीची होना।
- 3- 33/11KV विद्युत उपकेन्द्र पर सम्बन्धित 11KV पोषक पर सुरक्षा उपकरण कार्यशील नहीं होना, जिसके कारण सम्बन्धित 11KV Feeder Trip नहीं होना ।
उपरोक्त के अतिरिक्त हो सकता है कि (i) बस के ऊपर काफी ऊंचाई तक सामान रखा हुआ हो अथवा बस के ऊपर कुछ लोग बैठे हुये हों, (ii) चलती बस पर अचानक ऊपर से गुजरती 11KV लाईन का तार टूटकर गिर गया हो। Electricity Rule-1956 के अनुसार यदि उपरोक्त बिन्दु-1, 2 एवं 3 का पालन किया गया होता तो बिन्दु – ( i ) एवं (ii) की कोई सम्भावना नहीं रहती ।
गम्भीर प्रश्न उठता है कि कच्चे अथवा पक्के मार्ग के ऊपर विद्युत लाईन के नीचे गार्डिंग क्यों नहीं थी?
- 1- क्या लाईन बनाने के लिये प्रस्तावित प्राक्लन में गार्डिंग की व्यवस्था थी?
- 2- क्या प्राक्लन में गार्डिंग प्रस्तावित होने के बावजूद ठेकेदार के द्वारा गार्डिंग का निर्माण नहीं किया गया?
- 3- क्या बिना गार्डिंग बनाये ठेकेदार को गार्डिंग का भुगतान किया गया?
- 4- क्या विद्युत सुरक्षा निदेशालय द्वारा बिना लाईन का निरीक्षण किये लाईन को उर्जीकृत करने के लिये अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया गया?
- 5- क्या उधर से गुजरने वाले किसी भी विद्युत कर्मचारी / अधिकारी द्वारा बिना गार्डिंग के उक्त नीची लाईन का कभी संज्ञान लिया गया?
- 6 – क्या विद्युत सुरक्षा निदेशालय के किसी अधिकारी द्वारा उपरोक्त लाईन का कभी स्वत: संज्ञान लिया गया?
प्राय: यह देखा गया है कि प्राक्लन सुरक्षा मानकों के अनुसार बना होने के बावजूद सम्बन्धित ठेकेदारों के द्वारा अपूर्ण लाईन का निर्माण किया जाता है और विद्युत विभाग द्वारा निहित स्वार्थ में, अपूर्ण लाईन का पूर्ण बिल, बिना देखे, पास कर भुगतान तक कर दिया जाता है अथवा उच्चाधिकारियों के द्वारा दबाव बनाकर पूर्ण भुगतान करा दिया जाता है ।
हद तो तब हो जाती है जब प्रस्तावित लम्बाई की लाईन से भी कम लाईन का मौके पर निर्माण किया जाता है और ठेकेदार द्वारा उससे भी ज्यादा लम्बाई की लाईन का बिल प्रेषित कर, अतिरिक्त लम्बाई का संशोधित प्राक्लन स्वीकृत कराकर, वास्तव में निर्मित लाईन से भी बहुत ज्यादा अतिरिक्त भुगतान प्राप्त कर लिया जाता है । इन लाईनों की यह विशेषता होती है कि इनमें विभाग द्वारा निर्धारित अपने ही मानकों तक का पालन नहीं किया जाता। जिसमें सबसे कमजोर कड़ी विद्युत सुरक्षा है | जिसके नाम पर की जाने वाली अर्थिग एवं गार्डिंग, मौके पर सिर्फ मजाक नजर आती है। जिसके लिये उर्जा निगमों के सम्बन्धित कार्मिकों के साथ-साथ, प्रदेश सरकार का विद्युत सुरक्षा निदेशालय भी बराबर का उत्तरदायी है । क्योंकि विद्युत निर्माण में सुरक्षा मानकों का पालन कराने का उत्तरदायित्व विद्युत सुरक्षा निदेशालय का है। जिस पर कभी भी, किसी भी जांच में कोई टिप्पणी नहीं की जाती। क्योंकि प्रत्येक विद्युत दुर्घटना की जांच विद्युत सुरक्षा निदेशालय ही करता है और स्पष्ट है कि वह अपने विरुद्ध किसी भी सूरत में टिप्पणी नहीं कर सकता।
कटु सत्य यह है कि कम से कम आवश्यक सुधार हेतु भी, प्राय: उर्जा निगमों के द्वारा किसी भी विद्युत दुर्घटना की जांच स्वयं नहीं की जाती। यदि यदा-कदा जांच कराई भी जाती है तो जांच का उद्देश्य मात्र खानापूर्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता। जिसका भविष्य में सम्भावित विद्युत दुर्घटना से बचाव के लिये कोई महत्व नहीं होता । उर्जा निगमों में नित्य उच्चाधिकारी उपभोक्ता देवोभव एवं विद्युत कार्यो की समीक्षा हेतु मोबाईल एप पर वीडिओ कान्फ्रेंसिंग के द्वारा निर्देश देते है । परन्तु इस तथ्य पर कभी कोई विचार नहीं करता, कि दिये गये निर्देशों के पालन हेतु सम्बन्धित अधिकारियों एवं कर्मचारियों को कितना समय और आवश्यक संसाधन दिये गये हैं। यहां विद्युत सामग्री एवं उनकी गुणवत्ता पर चर्चा करना व्यर्थ है। क्योंकि अपने ही इच्छित स्थान पर, अपनी ही शर्तों पर कार्य करने वालों का उर्जा निगमों में सदैव से ही बोलबाला रहा है। जिसकी परिणति उच्चाधिकारियों एवं ठेकेदारों के निहित स्वार्थो की रक्षा की गारण्टी एवं विभाग हित में समर्पित कार्मिकों का उत्पीड़न के रूप में होती है।
स्पष्ट है कि जब हमें मालूम है कि रोड कासिंग पर लाईन इस कदर नीची अथवा कमजोर है और कोई गार्डिंग भी नहीं है तथा वहां पर निश्चित ही, कभी भी, कोई भी दुर्घटना घटना अनिवार्य है, तो उस पर भी हमारी इन्सानियत तक का मौन रहना, क्या जानते बूझते किसी के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं है। जिसके लिये (निलम्बित होने वाले) कुछ लोग ही नहीं, बल्कि पूरी की पूरी प्रणाली ही उत्तरदायी है। जहां एक ओर कर्मचारियों एवं अधिकारियों की घोर लापरवाही के कारण, निर्दोष अपने जानमाल से हाथ धो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आये दिन 10-10 वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त अधिकारी / कर्मचारी प्रबन्धन से अपने सदस्यों का उत्पीड़न समाप्त करने पर चर्चा करते रहते हैं। परन्तु दूर-दूर तक कहीं भी, कोई भी अपने सदस्यों की स्वार्थपूर्ण लापरवाही के कारण, असमय उजड़ने वाले परिवारों पर कोई चर्चा तक नहीं करना चाहता ।
भविष्य में यह देखना रोचक होगा कि कब हमारे अन्दर इन्सानियत जागेगी और निर्दोष प्राणियों के जानमाल की रक्षा के लिये दृढ़ संकल्पित होकर धरातल पर कार्य करेंगे अथवा हम पूर्ववत् निर्दोषों के खून से होली खेलते रहेंगे।
राष्ट्रहित में समर्पित ! जय हिन्द !
बी० के० शर्मा- महासचिव PPEWA.