
उ0प्र0 राज्य विद्युत परिषद के विघटन के बाद, कम्पनी अधिनियम-1956 के तहत गठित विद्युत वितरण कम्पनियों को वर्ष 2013 के बाद पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनियां घोषित किया गया। इन्हें वर्ष 2013 के बाद पूर्ण स्वामित्व कब दिया गया, अज्ञात है। जिसमें सबसे दुखद पहलू यह है, कि प्रदेश के सभी विद्युत वितरण निगम, प्रति वर्ष औसत लगभग रु0 5000 से 6000 करोड़ की दर से घाटे में डूबते गये। परन्तु उनके घाटे की कभी वास्तविक समीक्षा ही नहीं की गई। वितरण निगम अनुदान धनराशि की काठियों पर यूं ही रेंगते रहे। सुधार के नाम पर यदि कहीं कोई चर्चा हुई तो वह सिर्फ निजीकरण करने की ही हुई। वर्ष 2001 में वितरण कम्पनियों के गठन के बाद कार्य में लापरवाहियों के नाम पर सिर्फ स्थानान्तरण एवं निलम्बन का खेल खेला जाता रहा है।
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। कल दि0 09.01.2025 को उत्तर प्रदेश शासन के मुख्य सचिव माननीय श्री मनोज कुमार सिंह IAS के “X” हैन्डल पर डाली गई सूचना कि ”आज विद्युत वितरण निगमों में सुधार की रुपरेखा तैयार करने के लिये टांजेक्शन एडवाइजर को नियुक्त करने हेतु आर.एफ.पी (रिक्वेस्ट फार प्रपोजल) तैयार करने के सम्बन्ध में एनर्जी टास्क फोर्स (ETF) की बैठक कर विचार विमर्श किया।“ उपरोक्त खबर आते ही चारों ओर निजीकरण की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी। इस सम्बन्ध में ऊर्जा निगमों से सम्बन्धित कई संगठन, सेवानिवृत्त लोगों के नेत्रत्व में पिछले एक माह से भी अधिक समय से निजीकरण के विरोध करने हेतु लगातार सांकेतिक प्रदर्शन के आधार पर जनजागरण करते हुये, अन्तिम आन्दोलन की रुप रेखा तैयार करने में लगे हुये हैं।
आवश्यक सुधार के नाम पर वर्ष 2001 में तत्कालीन उ0प्र0 राज्य विद्युत परिषद के विघटन के बाद, कम्पनी अधिनियम-1956 के तहत गठित विद्युत वितरण कम्पनियों को वर्ष 2013 के बाद पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनियां घोषित किया गया। इन्हें वर्ष 2013 के बाद पूर्ण स्वामित्व कब दिया गया, अज्ञात है। जिसमें सबसे दुखद पहलू यह है, कि प्रदेश के सभी विद्युत वितरण निगम, प्रति वर्ष औसत लगभग रु0 5000 से 6000 करोड़ की दर से घाटे में डूबते गये। परन्तु उनके घाटे की कभी वास्तविक समीक्षा ही नहीं की गई। वितरण निगम अनुदान धनराशि की काठियों पर यूं ही रेंगते रहे। सुधार के नाम पर यदि कहीं कोई चर्चा हुई तो वह सिर्फ निजीकरण करने की ही हुई। वर्ष 2001 में वितरण कम्पनियों के गठन के बाद कार्य में लापरवाहियों के नाम पर सिर्फ स्थानान्तरण एवं निलम्बन का खेल खेला जाता रहा है। जहां तक ईमानदारी एवं आवश्यक कर्तव्य निष्ठा की महत्वत्ता की बात है तो वह न तो क्षेत्र के उपभोक्ताओं को और न ही राजनीतिज्ञों को कभी रास आयी है। परिणाम बात-बात एवं झूठी शिकायतों पर स्थानान्तरण एवं निलम्बन, जिसमें उच्चाधिकारियों के द्वारा भी अपने हाथ-साफ करते हुये, मनमाफिक स्थानान्तरण एवं नियुक्तियां की गई। यही कारण रहा कि वितरण कम्पनियों के लगातार बढ़ते घाटे के लिये कभी भी किसी के उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किये गये।
बेबाक के अनुसार, वितरण निगमों के घाटे का मूल कारण जन साधारण की भाषा में ”आमदनी चवन्नी और खर्चा रुपईया“ के साथ-साथ आश्चर्यजनक रुप से उक्त खर्चे के लिये प्रबन्धन का कोई उत्तरदायित्व नहीं होना तथा Political Welfare के लिये वितरण निगमों का प्रयोग होना है। जोकि मूल रुप से घाटे की बुनियाद है। जिस पर आज तक न तो किसी ने कोई ऊंगली उठाई और न ही किसी ने कभी कोई चर्चा की। इस सम्बन्ध में घाटे के मूल कारणों की सूची एवं विचार PPEWA संगठन के पत्र सं0 17/PPEWA/ दिनांकः 11.12.2024 द्वारा माननीय मुख्यमन्त्री जी को माननीय मुख्य सचिव उ0प्र0 शासन के माध्यम से प्रेषित किए जा चुके हैं। अब विद्युत वितरण निगमों में सुधार की रुपरेखा तैयार करने के लिये ट्रांजेक्शन एडवाइजर को नियुक्त करने हेतु आर.एफ.पी (रिक्वेस्ट फार प्रपोजल) तैयार करने का प्रस्ताव है। जोकि सीधे-सीधे एक लाख करोड़ से भी अधिक के घाटे में चल रहे वितरण निगमों पर अतिरिक्त वित्तीय भार डालने के समान है। ट्रांजेक्शन एडवाइजर नियुक्त करने का निर्णय, एक वैद्धानिक व्यवस्था है परन्तु इसके पीछे छिपे हुये उद्देश्य कहीं न कहीं, वितरण कम्पनियों के कार्मिकों को परेशान करने वाले हैं। जिसमें विश्वास कम छल ज्यादा नजर आता है। कारण स्पष्ट है कि यदि शासन की नजर में वितरण कम्पनियों के घाटे का मूल कारण दूषित औद्यागिक वातावरण एवं भ्रष्टाचार है, तो उसके लिये सर्वप्रथम शासन द्वारा नियुक्त प्रबन्धन ही उत्तरदायी है। जिसने अपने उत्तरदायित्व निर्धारित न किये जाने का अनुचित लाभ उठाते हुए, बिना भविष्य के सम्भावित परिणामों की कोई चिन्ता किये, अपनी मनमर्जी से कार्य किये गये। जिसमें मूल रुप से कार्मिकों की योग्यता एवं उपयोग्यता के उचित प्रयोग का घोर अभाव रहा।
संवेदनशील पदों पर योग्य, ईमानदार एवं निष्ठावान अधिकारियों एवं कर्मचारियों के स्थान पर सिफारिस एवं निहित स्वार्थ से प्रेरित होकर स्थानान्तरण एवं नियुक्तियां की गई। असंवेदनशीलता का परिचय देते हुये, अपने पद के अहंकार में कनिष्ठ के समक्ष उच्चाधिकारियों को जलील कर निष्ठावान एवं ईमानदार अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भावनाओं को लगातार कुण्ठित करते हुये, वितरण कम्पनियों के औद्योगिक वातावरण को इस कदर दूषित कर दिया गया है। जहां ईमानदारी और निष्ठा सिर्फ औपचारिकता मात्र रह गई है। अधिकांश नियमित अधिकारी एवं कर्मचारी विवेकहीन होकर सिर्फ रोबोट की तरह कार्य करने के लिये विवश हैं। प्रबन्धन में योग्यता के उपयोग करने की क्षमता के स्थान पर सिर्फ और सिर्फ अहंकार झलकता है। अब कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों के प्रति प्रेरित करने के स्थान पर, एक नई प्रथा ने जन्म लिया है, अब कार्य के लक्ष्य के स्थान पर निलम्बन के लक्ष्य निर्धारित किये जा रहे हैं।
सबसे दुखद पहलू यह है कि किसी भी उद्योग एवं उनके कार्मिकों के हितो के लिये समर्पित रहने वाले कार्मिक संगठनों के पदाधिकारी गण अपने निहित स्वार्थ से इस कदर ग्रसित हो चुके हैं, कि सेवानिवृत्त होने से पूर्व, उनके द्वारा अपना स्थान ग्रहण करने के लिये कभी किसी को तैयार ही नहीं किया गया। परिणाम, आज अधिकांश कार्मिक संगठनों के मूल पदों पर सेवा निवृत्त कार्मिक काबिज हैं। जिसके कारण उनमें आवश्यक ऊर्जा एवं समर्पण का घोर अभाव है। ऐसे ही अधिकांश पदाधिकारियों का एक समूह, पिछले एक माह से भी अधिक समय से, ऊर्जा निगमों के नियमित कार्मिकों को निरन्तर जागृत करने का प्रयास कर रहा है। परन्तु दुर्भाग्य से उनका यह प्रयास, बरसात में भीगे हुए पटाखों की तरह, बिना कोई टांय-टांय तक किये ही फुस हो जा रहा है। वर्तमान पूर्णतः विपरीत परिस्थितियों (लगातार बढ़ते घाटे का नियन्त्रण से बाहर होना) में टांजेक्शन एडवाइजर, चाहकर भी, नियमित कार्मिकों के हित में कोई निर्णय नहीं दे पायेगा। यदि सरकार सुधार हेतु कोई योजना लाती है तो उसका भी हश्र, पहले आई तमाम योजनाओं जैसा होगा जिसमें कार्य से ज्यादा, अपनी-अपनी हिस्सेदारी के अतिरिक्त कभी कुछ नहीं रहा। वितरण निगम आज भी सुधर सकते हैं। बस आवश्यकता है एक संकल्प की, जिसमें अपने दिमाग से स्थानान्तरण एवं नियुक्ति का भय निकालकर, अपने आपको निष्ठावान एवं ईमानदार बनाते हुये, एक नारे के साथ आगे बढ़ना होगा, कि न गलत करेंगे और न करने देंगे। अर्थात ”न खायेंगे और न ही खाने देंगे, चाहे भेज दो कहीं।“
उपरोक्त के लिये यदि आज कोई सभी कार्मिक संगठनों का नेत्रत्व कर सकता है, एवं नई दिशा दिखलाते हुए ऊर्जा का संचार कर सकता है, तो वह हैं श्री सुरेश चन्द्र सिंह, सेवा निवृत्त सहायक अभियन्ता, जोकि असाधारण कार्यकर्ता, श्रम एवं सामाजिक संगठनों के प्राण-प्रणेता, कुशल संचालकीय क्षमता के धनी, तेजस्वी, प्रखर वक्ता अधिकारों एवं कर्तव्य के प्रति समान रुप से संघर्ष के पक्षधर, स्वस्थ श्रम आन्दोलन के प्रति समर्पित, आदि की विलक्षण प्रतिभाओं के धनी हैं। बेबाक के अनुसार वे वास्तव में ऊर्जा निगमों के लौह पुरुष हैं, उनमें ईश्वर के आशीर्वाद से, नैसर्गिक रुप से त्याग एवं सेवाभाव के प्रति अदम्य साहस है। यदि वे निजीकरण के विरुद्ध हम सभी का साथ देने का कोई संकल्प लेते हैं, तो निश्चित ही, कहीं न कहीं, कोई एक ऐसी किरण अवश्य दिखलाई देगी, जोकि सभी के भविष्य को सुरक्षित करेगी।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.