
लखनऊ। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मी बुधवार को सड़क पर उतरे। उन्होंने शक्तिभवन के सामने जोरदार प्रदर्शन किया और जमकर नारेबाजी की। साथ ही बिजली कर्मियों ने फील्ड हॉस्टल से शक्ति भवन तक विशाल रैली निकाली। बिजली विभाग के कर्मचारियों ने निजीकरण के विरोध में जमकर हंगामा किया। इस विरोध प्रदर्शन में 10 राज्यों के 5 हजार से अधिक कर्मचारी शामिल हुए। सभी शक्ति भवन के सामने सड़क पर बैठ गए और जमकर नारेबाजी की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिंदाबाद और ऊर्जा मंत्री एके शर्मा मुर्दाबाद के नारे भी लगाए। हैरानी का विषय यह था कि इस विरोध प्रदर्शन में कई इंजीनियर्स शामिल नहीं हो पाये, क्योंकि तथाकथित अध्यक्ष आशीष गोयल के साथ समीक्षा बैठक में शामिल थे।

पुलिस के साथ फोर्स भी स्थिति को संभालने में जुटी रही। शक्तिभवन के सामने जोरदार प्रदर्शन किया और जमकर नारेबाजी की। प्रदेशभर से आए बिजली कर्मियों ने फील्ड हॉस्टल से शक्ति भवन तक विशाल रैली निकाली। फिर आम सभा में 29 मई से कार्य बहिष्कार करने का प्रस्ताव पारित किया गया। ऐलान किया कि निजीकरण वापस न होने तक अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार जारी रहेगा। कार्य बहिष्कार से पूर्व 16 से 30 अप्रैल तक जनजागरण अभियान चलेगा।
निजीकरण के खिलाफ बड़ा आन्दोलन होगा। 29 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार का किया जाएगा। इसके पहले, 16 अप्रैल से 30 अप्रैल तक जन-जागरण अभियान चलेगा। इसके तहत, सांसदों और विधायकों को ज्ञापन सौंपे जाएंगे। विरोध सभा आयोजित की जाएगी। 1 मई को मजदूर दिवस के अवसर पर बाईक रैली निकाली जाएगी, और 2 से 9 मई तक क्रमिक अनशन होगा। इसके बाद 14 से 19 मई तक नियमानुसार कार्य आन्दोलन और 20 मई को व्यापक विरोध प्रदर्शन होगा। 21 मई से 28 मई तक तीन घंटे का कार्य बहिष्कार किया जाएगा।
प्रदर्शनकारियों का कहना है- हम लोग पिछले चार महीने से अपनी आवाज उठा रहे हैं। कई बार शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी कर चुके हैं, इसके बाद भी अभी तक निजीकरण के नियमों में किसी तरह के बदलाव नहीं किए गए हैं। अब यह बर्दाश्त से बाहर है। प्रक्रिया नहीं रुकी इसलिए लखनऊ की सड़क पर उतरे हैं।
मंगलवार को नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज एंड इंजीनियर्स की आंदोलन को लेकर बैठक हुई थी। इसमें फैसला लिया गया था कि अगर सरकार अब भी निजीकरण वापस नहीं लेती है तो कर्मचारी आंदोलन करेंगे।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया- शहरी और ग्रामीण इलाकों में भेदभाव किया जा रहा है। शहर में 24 घंटे बिजली दी जाती है, लेकिन गांवों में 10-12 घंटे ही बिजली दी जाती है। क्योंकि कॉमर्शियल कनेक्शन में ज्यादा और डोमेस्टिक कनेक्शन में कम पैसे मिलते हैं।
सरकार ने एग्रीमेंट किया था कि 54 महीने में खुद का बिजली घर लगाकर पावर सप्लाई की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन 32 साल बाद भी कंपनी खुद का बिजली घर नहीं लगा पाई है। कई सालों तक पावर कॉरपोरेशन महंगी बिजली खरीद कर उन्हें सस्ते में देती रही। अब जाकर यहां की कंपनी खुद से बिजली की व्यवस्था कर रही है।
2023-24 के आंकड़ों के अनुसार कानपुर और आगरा की कंपनियों की तुलना कर लें तो सारा खेल समझ में आ जाएगा। कानपुर की कंपनी बिजली बेच कर उपभोक्ताओं से औसतन 7.96 रुपए प्रति यूनिट वसूलती है। जबकि आगरा की टोरेंट कंपनी को यूपी कॉर्पोरेशन कंपनी 5.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपलब्ध कराती है।
सरकार के फैसले को लेकर होने वाली रैली में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, लद्दाख, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी संघों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए है। करीब 10000 से अधिक लोग जुटे हैं।