
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता…कल उ0प्र0 विधानसभा में निजीकरण के प्रश्न पर माननीय ऊर्जा मन्त्री जी ने कहा कि वितरण निगमों का निजीकरण होगा तथा निजीकरण से न तो किसी की नौकरी पर कोई असर होगा और न ही बिजली महंगी होगी। यह सुनकर एक बात किसी भी तरह से समझ में नहीं आ रही है, कि जब देश के श्रेष्ठ अधिकारी, जोकि देश को चलाने का मादा रखते हैं, वे इन निगमों को चला पाने में पूर्णतः विफल हो चुके हैं अर्थात वे वितरण निगमों के लगातार बढ़ते घाटे पर नियंत्रण पाने में असफल होने पर इनके निजीकरण पर बल दे रहे हैं, तो प्रश्न उठता है कि आखिर निजी कम्पनी वालों के पास ऐसा कौन सा जादुई चिराग है, कि उन्होंने किसी बीमार उद्योग को खरीदा नहीं और वह स्वस्थ होकर लाभ प्रदान करना आरम्भ कर देगा।
जबकि सत्यता यह है कि निजी कम्पनी वाले बहुत सोच-समझकर, गुणात्मक लाभ को देखते हुये ही, किसी भी सार्वजनिक संस्थान का क्रय करते हैं। उनका प्रबन्धन राजनीतिक सिफारिसों एवं दबाव पर नहीं बल्कि संस्थान के लाभ को गुणात्मक रुप से बढ़ाने के लिये कार्य करता है। यह कटु सत्य है कि तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के विघटन के बाद निगमों का गठन तथा MoA में निहित दिशा निर्देशों का अतिक्रमण करते हुये, सीधे प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति कर, विगत लगभग 25 वर्षों में विभिन्न सुधार, सुदृढ़ीकरण, विद्युतिकरण, आदि की योजनाओं के नाम पर जनता के लाखों करोड़ रुपये पानी की तरह बहाये गये। जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा कार्य एवं सामग्री की गुणवत्ता के नाम पर नियमित कर्मियों को ताश के पत्तों की तरह खूब फेंटा गया, परन्तु कार्य एवं सामग्री की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के कभी भी कोई प्रयास नहीं किये गये। जिसका मूल कारण है कि सामग्री निर्माता एवं कार्यदायी संस्थायें राजनीतिक रुप से इतने मजबूत हैं, कि उनके कार्य एवं सामग्री की गुणवत्ता पर प्रश्न उठाने का साहस करने का अंजाम या तो काला पानी अथवा निलम्बन के रुप में भुगतना पड़़ता है।
सच्चाई यही है कि विगत 25 वर्षों में, बिजली कम्पनियों में MoA के विरुद्ध सीधे नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा ”सुधार के नाम पर उधार के समायोजन की नीति“ के तहत निगमों का घाटा बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है, वहीं निजी कम्पनियों ने चुनावी चन्दे के माध्यम से, इन बिजली कम्पनियों को क्रय करने के लिये, अपनी गिद्ध दृष्टि बनाये रखी है। ऐसी स्थिति में माननीय ऊर्जा मन्त्री जी का यह गणित किसी भी सूरत में समझ से बाहर है कि निजी कम्पनी वाला बिना कोई फेरबदल किये अर्थात न तो वह किसी कर्मचारी/अधिकारी की सेवाओं को प्रभावित करेगा और न ही बिजली के दामों में बढ़ोतरी करेगा और वित्तीय लाभ में भी रहेगा। क्योंकि हम सभी इस तथ्य से भलिभांति अवगत हैं कि किस तरह से राजनीतिक हस्तक्षेप एवं प्रशासनिक अधिकारियों की हठधर्मिता ने योग्यता की उपयोग्यता एवं उपयुक्तता का मजाक बनाकर, पूरे के पूरे ऊर्जा निगमों को विफलता की गर्त में धकेल दिया है।
यदि ऊर्जा निगमों के कार्मिक ढांचे का सामान्य विश्लेषण भी करें, तो यह पायेंगे, कि ऊर्जा निगमों में कर्मचारी/अधिकारी के पदों का मतलब सिर्फ एक नियुक्ति की खानापूर्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। किसी भी पद पर योग्यता एवं उपयोगिता निदेशक मण्डल नहीं बल्कि क्षेत्र के राजनीतिक व्यक्ति अथवा प्रशासनिक अधिकारी तय करते हैं। जिसका उक्त क्षेत्र में सुधार से कोई भी लेना देना नहीं होता। मजेदार तथ्य यह भी है कि नियुक्त होने वाले की भी निष्ठा विभाग के प्रति नहीं बल्कि उसको वहां नियुक्त कराने वाले के प्रति होती है। इसी प्रकार से बिजली कम्पनियां, आज सिर्फ एक राजनीतिक धर्मशाला बनकर रह गयी है। अतः यह समझ से बाहर है कि इन महान विभुतियों, जिनका एक ही सिद्धान्त रहा है “अपने ही इच्छित स्थान पर अपनी ही शर्तों के अनुसार कार्य करने का,” की सेवाओं को बिना प्रभावित किये और न ही बिजली महंगी किये, निजी कम्पनी किस प्रकार से लाभ कमाने के साथ-साथ, प्रदेश की जनता को बेहतर सेवायें भी प्रदान करेंगी? इससे तो एक ही बात समझ में आती है कि जिस वितरण कम्पनियों को देश के सबसे होनहार एवं काबिल प्रशासनिक अधिकारी चला रहे हैं, या तो वे झूठ बोल रहे हैं कि वितरण कम्पनियां घाटे में चल रही हैं अथवा किन्हीं गोपनीय शर्तों के साथ निजीकरण प्रस्तावित है। जिसमें सरकार/निगम, खरीददार निजी कम्पनी का घाटा, एक निर्धारित अवधि तक वहन करेंगे अथवा सौदे में ऐसा कोई घालमेल होगा, कि निजी कम्पनी को अप्रत्यक्ष रुप से इतना व्यवसायिक लाभ होगा, कि उसे घाटा वहन करने में कोई परेशानी नहीं होगी। क्योंकि धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता जा रहा है, कि अब देश की राजनीति समाज एवं देश सेवा न होकर एक व्यवसाय बनती जा रही है। जहां राजनीतिक दलों के लिये धन अनिवार्य होता जा रहा है। जिसके लिये सुधार एवं विकास की योजनायें अनिवार्य हैं।
बेबाक द्वारा अपने पिछले अंक No. 18/19.02.2025 में इस बात का उल्लेख किया था कि किस प्रकार से सार्वजनिक उद्योगों को बेचे जाने से पूर्व, सम्भवतः खरीददार की शर्तों के अनुसार सुदृढ़ कर, दुल्हन की तरह सजाने में विभाग लगा हुआ है। जोकि स्पष्ट तौर पर एक घोटाले के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि जब विभाग को बेचने की प्रक्रियां आरम्भ हो चुकी है, तब भी सुदृढ़ीकरण के कार्य किया जाना, स्वतः बहुत कुछ स्पष्ट कर देता है। जहां निगमों को नहीं बल्कि निजी कम्पनी को कर्मचारियों की हाजिरी लेनी है, वहां निजी कम्पनी के लिये उच्च तकनीक युक्त बायोमैट्रिक्स उपस्थिति में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मोबाइल संचालित फेशियल रिकॉग्निशन अटेंडेंस सिस्टम लगाये जाने का मतलब, सिर्फ प्रबन्धन ही बता सकता है।
क्या उ0प्र0पा0का0लि0 के प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा अपनी विफलता को ही अपनी सबसे बड़ी सफलता मानते हुये, निजी कम्पनियों को दिया जाने वाला यह एक अतिरिक्त उपहार है। विदित हो कि RDSS के तहत पहले से ही, हजारों करोड़ के कार्य युद्धस्तर पर चल रहे हैं। प्रश्न उठता है कि इन उपहारों की कीमत कौन देगा। अतः माननीय ऊर्जा मन्त्री जी के इस बयान को, कि निजीकरण के उपरान्त न तो कार्मिकों की नौकरी पर कोई असर नहीं होगा और न ही बिजली महंगी होगी, पूर्णतः राजनीतिक बयान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि एक बहुत छोटा सा परन्तु अतिमहत्वपूर्ण विचार है, कि जब निजी कम्पनी वाला बिना कोई परिवर्तन किए एक बीमार विभाग को चला सकता है, तो सरकार क्यों नहीं चला सकती। आखिर वो क्या कारण है, कि सरकार एवं निगमों के प्रबंधन को, निजी कम्पनियों इतनी प्रिय हैं, कि वे निजी कम्पनियों का गुणगान करने से नहीं थकते। जबकि यह स्पष्ट है कि निजी कम्पनियां, वितरण कम्पनियों को जन कल्याण हेतु क्रय नहीं कर रही हैं। देश में चल रही निजी रेल गाणियों एवं भारतीय रेल के किराये में अन्तर देखा जा सकता है। जबकि सुविधा के नाम पर दोनों के ही द्वारा वाह्य ऐजेन्सियों को कार्य सौंपा हुआ है।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!….बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.