
पिछले बेबाक सं0 15/05.07.2024 द्वारा इस महत्वपूर्ण तथ्य ”उर्जा निगमों में बुनियादी लापरवाही के कारण लगातार हो रही विद्युत दुर्घटनाओं में विद्युत कर्मियों के साथ-साथ, नित्य आम जन जीवन भी अकाल मृत्यु का शिकार हो रहा है“ पर जनहित में प्रकाश डालने का बेबाक द्वारा यथा सम्भव प्रयास किया गया था। आज मध्य रात्रि “Voice of UPPCL Media” के वहाट्सएप ग्रुप पर उनके Admin पत्रकार महोदय द्वारा एक दिल दहलाने वाली वीडिओ शीर्षक ”खुले में रखा ट्रान्सफार्मर मौत को दे रहा दावत, खेलते खेलते बच्ची ने ट्रान्सफार्मर को छुआ और बच्ची को लगा करंट, विभाग की लापरवाही आई सामने“ पोस्ट की गई थी।
रिपोर्ट के अनुसार उक्त वीडिओ थाना नवाबगंज मंझना फर्रुखाबाद की है। उक्त वीडिओ देखने से यह स्पष्ट हुआ कि एक ट्रान्सफार्मर (सम्भवतः100 के0वी0ए0 का) दुकान की बगल में, दुकानों के आगे बने चबूतरे की ही ऊंचाई पर, जमीन पर ही स्थापित है तथा उसकी HT Side दुकान की ओर है। जहां एक बच्ची ने नैसर्गिक बच्चों की मानसिकता के अनुसार, बिना मौत की आहट सुने, सामान्य रुप से जाकर परिवर्तक की HT Rod को छू लिया और परिणामतः बच्ची Electric Flashing के साथ नीचे गिर गई। यह देखकर बेबाक की आंखों में भी आंसू आ गये। कि अभी तक हम अपने संविदा कर्मियों एवं राहगीरों की हो रही, असमय दर्दनाक मौत में ही शामिल थे, परन्तु अब हम अपने कर्मों के कारण, अबोध बच्चों की असमय दर्दनाक मौत में भी सम्मिलित हो गये हैं। यह वीडिओ निश्चित ही वितरण निगमों पर एक कलंक के समान है।
उर्जा निगम बड़े-बड़े दावे करते हैं, परन्तु आश्चर्यजनक सत्य यह है कि उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं हैं कि सामग्री एवं कार्य की गुणवत्ता के मानक क्या होते हैं। (यह कटु सत्य है कि वितरण निगमों में क्वालिटी की आड़ में क्वालिटी सेल, लिफाफों के बदले गुणवत्ताहीन सामग्री की आपूर्ति हेतु, विद्युत सामग्री निर्माता/आपूर्तिकर्ता के एजेन्टों के रुप में कार्य कर रहे हैं। क्वालिटी सेल के न तो कोई मानक हैं और न ही कोई नियम।) निश्चित ही उपरोक्त कथित ट्रान्सफार्मर को विभागीय प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद ही उर्जीकृत किया गया होगा। जिसमें प्राक्लन से लेकर, प्लिन्थ पर ट्रान्सफार्मर स्थापित करने की प्रक्रिया सम्मिलित है। परन्तु उक्त ट्रान्सफार्मर का जमीन पर रखा हुआ होना यह स्वतः प्रमाणित करता है कि ट्रान्सफार्मर स्थापित करने की प्रक्रिया मात्र खानापूर्ति हेतु कागजों पर ही की गई है। सम्भवतः बिना कोई कार्य के ठेकेदार का भुगतान भी कर दिया गया होगा। जिसमें कार्य का सत्यापन अवर अभियन्ता, सहायक अभियन्ता के साथ-साथ अधिशासी अभियन्ता द्वारा किया गया होगा। ट्रान्सफार्मर के क्षतिग्रस्त होने के बाद भी विभाग द्वारा, किसी न किसी ठेकेदार के माध्यम से क्षतिग्रस्त ट्रान्सफार्मर को बदला गया होगा।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि Electricity Rule-1956 का पालन करने के लिये प्रतिबद्ध विभागीय अधिकारी/कर्मचारियों को ट्रान्सफार्मर की स्थापना में कभी कोई कमी क्यों दिखाई नहीं दी। विदित हो कि विद्युत लाईन एवं उपकरणों पर ”क“ श्रेणी के ठेकेदार ही कार्य करने के लिये अधिकृत हैं। अर्थात चाहे ठेकेदार हो, अवर अभियन्ता हो, सहायक अभियन्ता हो, अधिशासी अभियन्ता हो, अधीक्षण अभियन्ता हो अथवा मुख्य अभियन्ता हो, सभी के सभी को Electricity Rule-1956 का पूर्ण ज्ञान होना अनिवार्य है। जिसके सापेक्ष ही उ0प्र0पा0का0लि0 के द्वारा परिवर्तक एवं विद्युत खम्भें लगाने हेतु मानक निर्धारित किये हुये हैं। प्रश्न उठता है कि आखिर वो मानक कहां हैं? उनका पालन करने का उत्तरदायित्व क्या उस निर्दोष बच्ची का है अथवा विद्युत उपकरणों का स्वयं है। यहां यह प्रश्न करना हास्यापद है कि मानकों का पालन क्यों नहीं किया गया। क्योंकि निहित स्वार्थ में विद्युत सुरक्षा मानकों को एक तरफ रखकर, ऐसे कार्य करना, जिसमें किसी निर्दोष के प्राण तक जाने की प्रबल सम्भावना हो, विद्युत अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिये आम हो चुका है। नित्य घटनायें घटती रहती हैं, निर्दोष घातक दुर्घटनाओं के शिकार होते रहते हैं, उनके परिवार रोते बिलखते रहते हैं। किसी को भी रत्तीभर फर्क नहीं पड़ता।
स्पष्ट है कि जिस विभाग के खुद, औसतन प्रतिदिन 3 कार्मिक घातक विद्युत दुर्घटनाओं के शिकार होते हों, जिनको बचाने के लिये विभाग के पास न तो कोई विचार ही है और न ही कोई कार्य योजना है। अर्थात विभाग को किसी के जीवन में कोई रुचि ही नहीं है। घातक दुर्घटनायें उनकी दिनचर्या का एक अंग मात्र के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं। किसी का परिवार उजड़े भीख मांगे उन्हें क्या, उनके अपने-अपने लक्ष्य निर्धारित हैं। परन्तु इसके विपरीत, ये अपने मुंह से जरा सी मलाई छिनते ही अथवा कहीं अन्यत्र स्थानान्तरण होते ही, माता-पाता और अपने बच्चों की झूठी बीमारी तक का हवाला देकर, मानवता के आधार पर अपना स्थानान्तरण रुकवाने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगाने से नहीं चूकते, परन्तु इन्हें दूसरों के बालक, बालक ही नजर नहीं आते। उपरोक्त दुर्घटना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि वितरण निगम आकंठ भ्रष्टाचार में इस कदर लिप्त हो चुके हैं कि उनके लिये मानवता, महत्वहीन हो चुकी है। पिछले कुछ दिनों से लगातार मानसून आने की सूचना के साथ, विद्युत लाईनों एवं उपकरणों से दूर रहने की अपील, क्षेत्रीय मुख्य अभियन्ताओं के द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार करके अपने उत्तरदायित्वों की इतिश्री की जा रही है। जो स्वतः इस बात का प्रमाण है कि स्वयं मुख्य अभियन्ता को भी अपने कार्य एवं सामग्री की गुणवत्ता का पूर्ण ज्ञान है।
विद्युत उपकेन्द्रों पर स्थापित सुरक्षा उपकरणों की स्थिति यह है कि यदि तार जमीन पर भी पड़ा रहे तो लाईन ट्रिप ही नहीं होती। सभी जगह ठेकेदारी का वर्चस्व कायम है। विद्युत परीक्षण खण्डों में या तो परीक्षण हेतु उपकरण उपलब्ध नहीं हैं या फिर उनको चलाने वाला कोई नहीं है। परीक्षण खण्ड में नियुक्त कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने वाला भी कोई नहीं है। इन सबके पीछे घूम फिरकर एक ही तथ्य बार-बार उजागर होता है कि कहने के लिये सभी एक से बढ़कर एक इन्जीनियर हैं, परन्तु वास्तविक इन्जीनियर कोई नहीं है। विद्युत सुरक्षा को लेकर विभाग की न तो कोई अपनी नीति है और न ही कोई कार्य योजना। अभियन्ता निदेशक सिर्फ रबर स्टाम्प के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, उनके पास न तो कोई विचार हैं और न ही उन विचारों के लिये कोई कार्य योजना। उनका बस एक ही कार्य है, हां में हां मिलाना। अतः सभी कार्य हेतु अध्यक्ष/प्रबन्ध निदेशक उ0प्र0पा0का0लि0 एवं प्रबन्ध निदेशक वितरण निगमों के दिमाग में जो भी विचार आ जाये, बस वही नीति एवं कार्य योजना है। प्रश्न उठता है कि आखिर विद्युतीकरण एवं प्रणाली सुदृढ़ करने हेतु जारी तमाम योजनाओं का क्या महत्व है? जब हम किसी के जीवन की रक्षा ही न कर सकें।
परन्तु यह सत्य है कि यदि हम संकल्प लेकर बुनियादी कार्यों पर थोड़ा सा भी ध्यान देंगे, तो असमय कई घर उजड़ने से ही नहीं बच जायेंगे, बल्कि हम मानव हत्या के पाप से भी बच जायेंगे। उर्जा निगमों के प्रबन्धन मानें या न मानें, परन्तु कटु सत्य यही है कि उनके संरक्षण में बन्द लाईनों में, कार्य करते वक्त कब विद्युत प्रवाह पुनः आरम्भ हो जाये किसी को भी पता नहीं। विद्युत खम्भों में कब विद्युत प्रवाह होने लग जाये पता नहीं, विद्युत उपकरणों की स्थापना एवं अर्थिंग के तो कोई मानक देखने के लिये तैयार ही नहीं है। जिसका प्रमाण है नित्य निर्दोष विद्युत कार्मिकों के साथ-साथ राहगीरों का घातक दुर्घटना का शिकार होना। आज भी खुले में, जमीन पर असंख्य परिवर्तक स्थापित हैं। जिन पर यदि कोई दुर्घटना घटित नहीं हो रही है तो वह सिर्फ चमत्कार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। यह देखना रोचक होगा कि क्या उर्जा निगम मानव हत्या के कलंक से बचने हेतु कुछ उपाय करेंगे अथवा लोग यूं ही धन और पाप एकत्र करते रहेंगे। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA