निजीकरण का विरोध, कहीं भ्रष्टाचार का समर्थन तो नहीं है?

मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता… यक्ष प्रश्न कि “क्या निजीकरण का विरोध, कहीं भ्रष्टाचार का समर्थन तो नहीं है”? क्योंकि आज वितरण निगमों का पूरा का पूरा वृक्ष, जड़ से लेकर उसके पत्तों तक, भ्रष्टाचार के असाध्य रोग से ग्रसित हो चुका है। बेहद ही अफसोसजनक है कि जिनकी जिम्मेदारी है, भ्रष्टाचार का ईलाज करने की, वे खुद ही भ्रष्टाचार के रोग से ग्रसि़त हैं। बस अन्तर इतना है, कि अब वे चाहते हैं कि सिर्फ वे ही भ्रष्टाचार करें, बाकी सभी आंखें मूंदें रखें। परन्तु जैसा कि इन्सान की नैसर्गिक प्रवृत्ति होती है, कि उसे जिस काम को करने से जितना भी रोको, उतना ही वह उसे करने का प्रयास करता है। उस पर भी तब, जब कोई छुपाकर अकेले-अकेले कोई कार्य कर रहा हो। जहां हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों का मूल उपदेश माया-मोह का त्यागकर, इन्सानियत की सेवा करना है। वहीं धरातल पर जब इसको देखते हैं तो चारों ओर, चाहे नेता हो, अधिकारी हो, कर्मचारी हो अथवा अपने आपको सन्त-महात्मा कहलाने वाला, सभी मोह-माया में बुरी तरह से जकड़े हुये नजर आते हैं।

इसी प्रकार से उ0प्र0पा0का0लि0 से लेकर उसकी सभी वितरण कम्पनियों तक में अधिकांश लोग भ्रष्टाचार के रोग से ग्रसित हैं। जिनमें ईलाज अर्थात भ्रष्टाचार की रोकथाम के नाम पर, बहुमत के आधार पर भ्रष्टाचारियों के मार्ग में, छोटा सा भी अवरोध उत्पन्न करने वालों को ही दण्डित कर, भ्रष्टाचार के उन्मूलन का कार्य किया जाता है। इस विषम परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि यदि प्रस्तावित निजीकरण पर रोक लगती है अथवा सरकार द्वारा निजीकरण टाला जाता है। तो किस प्रकार से वर्तमान भ्रष्ट व्यवस्था में कोई भी सुधार योजना पर कार्य होगा। क्या निजीकरण का विरोध करने वाले वास्तव में, विभाग में सुधार के लिये कृत संकल्प हैं अथवा सिर्फ वे मुंह से लूट का टुकड़ा छीने जाने के भय से भयभीत हैं।

क्या निजीकरण टाले जाने के बाद, पूर्ववत् एक बार फिर खुली लूट का खेल, खेला जायेगा? क्योंकि प्रचलित आन्दोलन में निष्ठा एवं ईमानदारी की बात छोड़िये, लोगों की अपने-अपने संवर्गीय कार्मिक संगठनों के प्रति निष्ठा, कहीं दूर-दूर तक दिखलाई नहीं पड़ रही है। स्पष्ट है कि यदि कोई यह सोचता हो, कि जो अपने संवर्ग के ही प्रति निष्ठावान नहीं हैं, उनके सहारे वे कोई संघर्ष जीत लेंगे। तो यह कोरी कल्पना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि राजनीतिक/तकनीकी कारणों से प्रस्तावित निजीकरण टलता भी है, तो उसका एक ही मतलब होगा, कि लूटने वालों को, लूटने का एक और मौका दिया जाये। अतः आज भी यह आवश्यक है, कि नियमित कार्मिक ऊर्जा निगमों को अपना मानते हुये उसके प्रति निष्ठावान होने का संकल्प लें।

यह सार्वभौमिक सत्य है कि “जो खाली हाथ आया है, वह खाली हाथ ही जायेगा”। सदियों से इन्सान अपनी कमाई/लूटी/एकत्र की हुई दौलत को अपने साथ ले जाने का हर-सम्भव यत्न करता आ रहा है। मिस्र में हजारों साल पुरानी पाये जाने वाली ममी में हीरे-जवाहरात, इस बात का प्रमाण हैं, कि शरीर के साथ-साथ दौलत दफनाये जाने के बावजूद, आज भी दोनों ही यहीं के यहीं हैं। यह कटु सत्य है कि आज वितरण निगमों में योग्यता एवं अनुभव की प्रबन्धन को कोई आवश्यकता नहीं है। स्मरण रहे कि प्रबन्धन का अंग सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं हैं, उसका अंग वे सभी अधिकारी भी हैं, जो अपनी कुर्सियों पर सिर्फ अपने स्टेटस का दिखावा करने के लिये, सफेद तौलिया डलवाकर बैठते हैं और बड़ी-बड़ी निजी गाड़ियों में सफर करते हैं।

उपभोक्ता हो या अधीनस्थ, उन सब पर अपने पद का रौब दिखलाने का हर समय प्रयास करते नजर आते हैं। ऐसे अधिकारी दिखावे मात्र के लिये किसी कार्मिक संगठन के सदस्य होते हैं, अन्यथा ये अधिकारी कम, उच्चाधिकारियों एवं कतिपय राजनीतिक लोगों के पालतू …… से अधिक कुछ भी नहीं होते। अधिकारी का मतलब यह होता है, कि जो इन्सानियत से परिपूर्ण, जनहित में अपने अधिकारों का प्रयोग करे, न कि अपने मालिक के निर्देशानुसार, उनका शोषण एवं शिकार करने का प्रयास करे। पहले सरकारी महकमों में नियमित चरणबद्ध भ्रष्टाचार होता था। परन्तु अब जिसको जो मिला वो उसका, इसी क्रम में अब आपस में ही छीना-झपटी का दौर आरम्भ हो चुका है। जिसके परिणाम है स्थानान्तरण-नियुक्ति एवं निलम्बन-बहाली, तदुपरान्त गिन्नियों की चमक के आधार पर जांच में दोषी अथवा निर्दोष घोषित होना। उनकी पहली प्राथमिकता ही यही होती है कि छोटे से छोटा कार्य भी वाह्य कार्यदायी संस्थाओं के माध्यम से कराया जाये। विभाग के पास आई0टी0 के अलग से निदेशक नियुक्त हैं। परन्तु सभी आवश्यक Mobile App तक बाहरी संस्थाओं के माध्यम से तैयार कराये जाते हैं। निगमों के पास अपनी आवश्यकताओं के अनुसार विद्युत सामग्रियों के Technical Specification तक नहीं हैं। निर्माता/आपूर्तीकर्ताओं के द्वारा अपनी सामग्री के Technical Specification एवं GTP प्रस्तुत की जाती हैं। जिसे विभागीय आवश्यकताओं के अनुसार स्वीकृत नहीं किया जाता। बल्कि गिन्नियों की चमक के आधार पर स्वीकृत किया जाता है। इसी प्रकार से किसी नये निर्माता कम्पनी के उत्पाद के लिये, उक्त कम्पनी को भी गिन्नियों की चमक के आधार पर स्वीकृत किया जाता है।

सभी निविदाओं के विरुद्ध कराये जाने वाले कार्यों के पर्दे के सामने अनुबन्धकर्ता एवं Engineer of Contract अधीक्षण अभियन्ता एवं मुख्य अभियन्ता हैं। जिनका सिर्फ और सिर्फ प्रशासनिक उत्तरदायित्व है। प्रचलित चर्चाओं के अनुसार एक मोटी हिस्सेदारी के आधार पर Engineer of Contract द्वारा अनुबन्ध किया जाता है। जबकि पर्दे के पीछे डिस्काम के प्रबन्ध निदेशक एवं निदेशक (वित्त) ही पूरे कार्य के मालिक होते हैं। यदि वे कहें कि कार्य पूर्ण हो गया है, तो पूर्ण है। यदि वे कहें कि कार्य गुणवत्तायुक्त है, तो गुणवत्तायुक्त है। यथार्थ से किसी को कोई मतलब नहीं होता है। वितरण कम्पनियों के सभी कार्यालयों में Biometric Attendance के आदेश, विभाग में कोई सुधार की ओर इशारा नहीं कर रहे हैं। बल्कि ये उपभोक्ताओं को बहकाने की आड़ में, अपने हितों को साधने के लिये, बाहरी लोगों को व्यापार देने, आदि के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि प्रबन्धन भलिभांति यह जानता है कि अधिकांश विद्युत कार्मिक उसके ही निर्देशानुसार, निर्धारित कार्यावधि से कहीं बहुत ज्यादा कार्य करता है।

विभागीय उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने के लिये, उसे बमुश्किल अपने ही बच्चों के समय में से, समय चुराना पड़ता है। जहां इस प्रकार की अनावश्यक एवं गुणवत्ताहीन सामग्री के क्रय एवं उनके रख-रखाव के अभाव में विभाग पर अनावश्यक वित्तीय भार तो बढ़ता ही है, तो वहीं विभाग इस प्रकार की चीजों के कबाड़ खाने बनकर रह गये हैं। जिसका मूल कारण उनकी खरीद-फरोख्त में मिलने वाली आकर्षक हिस्सेदारी है। जिससे किसी को कभी कोई आपत्ति नहीं होती। निजी कम्पनियां निवेश करती है लाभ कमाने के लिये, परन्तु ऊर्जा निगम उधार मांग-मांग कर खर्च करते हैं सिर्फ अधिक से अधिक हिस्सेदारी पाने के लिये। क्योंकि निजीकरण टलने के बाद भी यही प्रबन्धन और यही अधिकारी-कर्मचारी होंगे। जिनके कार्य के नाम पर, कार्मिकों की बलि चढ़ाने के लक्ष्य होंगे। तो प्रश्न उठता है कि वितरण निगम सुधरेंगे कैसे। अतः यह कहना कदापि अनुचित न होगा कि “निजीकरण का विरोध, कहीं भ्रष्टाचार का समर्थन तो नहीं है”?

राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.

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    सर्वप्रथम आप का यूपीपीसीएल मीडिया में स्वागत है.... बहुत बार बिजली उपभोक्ताओं को कई परेशानियां आती है. ऐसे में बार-बार बोलने एवं निवेदन करने के बाद भी उस समस्या का निराकरण नहीं किया जाता है, ऐसे स्थिति में हम बिजली विभाग की शिकायत कर सकते है. जैसे-बिजली बिल संबंधी शिकायत, नई कनेक्शन संबंधी शिकायत, कनेक्शन परिवर्तन संबंधी शिकायत या मीटर संबंधी शिकायत, आपको इलेक्ट्रिसिटी से सम्बंधित कोई भी परेशानी आ रही और उसका निराकरण बिजली विभाग नहीं कर रहा हो तब उसकी शिकायत आप कर सकते है. बिजली उपभोक्ताओं को अगर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई, बिल या इससे संबंधित किसी भी तरह की समस्या आती है और आवेदन करने के बाद भी निराकरण नहीं किया जाता है या सर्विस खराब है तब आप उसकी शिकायत कर सकते है. इसके लिए आपको हमारे हेल्पलाइन नंबर 8400041490 पर आपको शिकायत करने की सुविधा दी गई है.... जय हिन्द! जय भारत!!

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