
चूंकि अब वितरण कम्पनियों में नियम कायदे महत्वहीन हो चुके हैं, परीक्षा के समय, परिक्षायें समाप्त होने से पूर्व, अतिरिक्त कक्षायें लगाकर, सजायें सुना-सुना कर प्रेरित करने का नया तरीका भी विफल हो चुका है। अतः अब बस एक ही तरीका बचा है कि शहरों में वसूली गैंगों के नाम से मशहूर विशेषज्ञों की सेवायें लेने पर विचार किया जाये। क्योंकि अपेक्षित राजस्व वसूली में असफलता के कारणों को तलाशना कोई चाहता ही नहीं है। अतः जहां एक तरफ, प्रबन्धन अपनी असफलता छुपाने के लिये, अपने ही कार्मिकों को लगातार बाहरी लोगों से पिटवा रहा हैं तो वहीं दूसरी ओर स्वयं भी पीट ही रहा है….
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। आज प्रदेश के सभी डिस्कामों में एकमुश्त समाधान योजना के तहत बकायेदारों से बकाया, जिसमें जितना बड़ा बकायेदार, उतनी बड़ी छूट के आधार पर वसूली की चर्चा जोरों पर है। अर्थात जिसने जितना बड़ा बकाया रखने में सफलता प्राप्त की, उसको उतनी ही बड़ी छूट। एक तरफ वसूली के नाम पर नित्य बकायेदारों के संयोजनों की कटाई और कर्मचारियों की कुटाई चल रही है, तो वहीं दूसरी तरफ RDSS के तहत चल रहे कार्यों एवं उसमें प्रयुक्त सामग्री की गुणवत्ता से किसी को कोई मतलब नही है। क्योंकि वसूली से ध्यान हटा नहीं कि खुद का टिकट कटा नहीं। इसमें विभाग का लाभ किस प्रकार से है, यह सिर्फ प्रबन्धन ही बता सकता है।
तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 का जब से विघटन हुआ है, तब से नवगठित वितरण कम्पनियों में बकाये की वसूली की ही चर्चा है। वितरण कम्पनियों के द्वारा समय-समय पर अपने कार्मिकों को, तमाम विषयों पर औपचारिक प्रशिक्षण दिलवाकर, विद्वान बनाने का हर-सम्भव प्रयास किया जाता रहा है। परन्तु ”वसूली“ जैसे सबसे चर्चित प्रमुख एवं अनिवार्य विषय पर, आज तक कभी कोई ”व्यवसायिक प्रशिक्षण“ की व्यवस्था नहीं की गई है। जिससे कि देवताओं से वसूली किस प्रकार की जाये, बताया जा सके। क्योंकि वितरण कम्पनियों के कार्मिकों को, प्रबन्धन एवं शासन-प्रशासन द्वारा समय-समय पर यह समझाया जाता रहा है, कि उपभोक्ता ”देवता“ के समान है। परन्तु हिन्दु धर्म में तो देवताओं को सिर्फ चढ़ावा चढ़ाने का ही विद्धान है, परन्तु उनसे वसूली का कोई विद्धान नहीं है। ऐसी स्थिति में देवता से किस प्रकार से वसूली हो, यह बताने के लिये कोई भी तैयार नहीं है। जिसका परिणाम यह है कि आये दिन देवी-देवताओं के द्वारा विद्युत कर्मियों की कुटाई की तस्वीरें एवं वीडिओ सोशल मीडिया पर आम दिखाई दे जाती हैं। वैसे तो विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के पास, कभी किसी जांच, तो कभी किसी कार्यवाही, तो कभी स्थानान्तरण, तो कभी बहाली, तो कभी नियुक्ति, आदि के नाम पर वसूली में विशेषज्ञता हासिल हैं। इसी के साथ-साथ सुविधा-शुल्क के विरुद्ध अनियमित कार्य जैसेः अवैध लाईन निर्माण, बिजली चोरी, मीटर रीडिंग में हेरा-फेरी, आदि जैसे कार्य करने-कराने में भी, अनुभव का विशाल भण्डार है। वैसे यदि उपभोक्ता सिर्फ एक बार, किसी भी प्रकार से अधिकारी छोड़, संविदाकर्मी तक भी पहुंच जाता है, तो बकाया बिल के साथ-साथ, अपना सुविधा शुल्क वसूलने में भी इनका कोई सानी नहीं है। परन्तु देवताओं के समान उपभोक्ताओं से उनके घर जाकर बकाया की वसूली का इनके पास कोई भी अनुभव एवं युक्ति नहीं है। जिसके ही कारण आये दिन, जहां एक तरफ बकाया मांगने पर, विद्युत कार्मिकों को, बकायेदार बजा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर बकाया न वसूल पाने के कारण पा0का0लि0 के अध्यक्ष महोदय बजा रहे हैं। जिसमें रोचक बात यह है कि पिटने वाले कार्मिकों के बीच अधिकारियों की लम्बी चौड़ी फौज, अपने ही समक्ष, अपने ही सिपाहियों को, दोनों तरफ से पिटते हुये देखकर भी, सिर्फ कर्तव्य विमूढ़ होकर नजारा देख रही है। पा0का0लि0 के अध्यक्ष यहां राजा के समान हैं तथा उन्होंने यदि किसी को दोषी मान लिया, तो वह बिना किसी जांच के भी पूर्ण दोषी ही माना जायेगा। यही उनका विद्धान है।
पा0का0लि0 के पास तमाम IPS अधिकारी के साथ-साथ अपने 75 पुलिस थाने एवं प्रत्येक जनपद में प्रवर्तन दल हैं। परन्तु वे सभी सरकारी मेहमान हैं तथा प्रत्येक वर्ष स्वतन्त्रता दिवस एवं गणतन्त्र दिवस पर उनकी विशेष सेवाओं के कारण, उनको पदकों एवं प्रमाण पत्रों से सम्मानित किया जाता है। जबकि वितरण कम्पनियों में यदि कोई विशेष आशीर्वाद प्राप्त नहीं है तथा स्वतन्त्रता दिवस पर बच गया, तो गणतन्त्र दिवस पर, नहीं तो अगले स्वतन्त्रता दिवस तक अनुशासनात्मक कार्यवाही एवं दण्ड के प्रमाण पत्रों से सम्मानित हो ही जाता है। जिस पर आजकल एक प्रतिष्ठित अनुशासनात्मक कार्यवाही एवं नियम-कायदों के ज्ञानी भी अपने ज्ञान के कैपसूलों को कहीं फेंककर अब ”तू न चलेगा तो चल देंगी राहें“ के गीत गाकर, अपनी ही धुन पर ज्ञान बांटते नजर आ रहे हैं। क्योंकि उनके ज्ञान के कैपसूल, पा0का0लि0 के कानों पर एक मच्छर के समान भी धुन पैदा करने में पूर्णतः विफल हो चुके हैं। चूंकि अब Section-5 के माध्यम से RC जारी कर, राजस्व प्राप्त करने की योजना असफल हो चुकी है। अतः अब प्राथमिकता के आधार पर राजस्व वसूली हेतु विशेषज्ञों को बुलाकर, उनसे विशेष प्रशिक्षण दिलवाये जाने की आवश्यकता है। जिसके लिये, शहरों में वसूली गैंगों के नाम से मशहूर विशेषज्ञों की सेवायें लेने पर भी विचार किया जा सकता है। क्योंकि वैसे ही अब नियम-कायदे महत्वहीन हो चुके हैं, जहां एक तरफ, हम बाहरी लोगों से अपने कार्मिकों को पिटवा रहे हैं तो दूसरी ओर स्वयं भी पीट ही रहे हैं। जिसका परिणाम है कि अधिकांश मुख्य अभियन्ता तक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर, अपने ऐसे उत्तरदायित्वों से मुक्ति पाना चाहते हैं, जिसमें उनके पास करने के लिये कुछ नहीं है, परन्तु खोने के लिये उनकी प्रतिष्ठा शेष मात्र है। हम अपने ही बकाये की वसूली के नाम पर, खुले दिल से अपना ही पूर्ण ब्याज माफ कर देते हैं, रात-दिन प्रचार-प्रसार कर, जगह-जगह राजस्व शिविरों के आयोजनों पर व्यय करते हैं।
बकाये के विरुद्ध जारी RC पर भी प्रशासन के साथ सहयोग करते हुये, अपने कर्मचारी एवं वाहन तक उपलब्ध कराते हैं। इसके बावजूद, हम लगातार घाटे में ही डूबते जा रह हैं। वही पुरानी कहावत कि ”कमाई चवन्नी और खर्चा बारह आना“। बात-बात पर बाहरी संस्थाओं को कार्य पर लगाने की हमारी आदतें, जोकि न तो आदतें हैं और न ही समाधान, बल्कि वास्तविक रुप से उनके बदले मिलने वाली हिस्सेदारी का लालच है। प्रश्न उठता है कि उ0प्र0पा0लि0 में CA नियुक्त हैं, उनकी वास्तविक उपयोगिता क्या है। इसी प्रकार से IT Engineers की एक पूरी फौज है, परन्तु करोड़ों रुपये के Apps बाहरी कम्पनियों के माध्यम से तैयार कराये जाते हैं। बेबाक का स्पष्ट रुप से यह मानना है कि ऊर्जा निगमों में अव्यवस्था का बोलबाला है। परन्तु उसके लिये उसके कार्मिकों के साथ-साथ प्रबन्धन भी, पूर्णतः उत्तरदायी है। ऐसा प्रतीत होता है कि सम्भवतः प्रबन्धन भी यह नहीं चाहता कि ऊर्जा निगम व्यवस्थित होकर, राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते हुये लाभ के मार्ग पर आगे बढ़ें।
शायद यही कारण है कि नियमित रुप से बढ़ते हुये घाटे की जिम्मेदारी कभी भी प्रबन्धन द्वारा आगे बढ़कर वहन करने का साहस नहीं किया गया। बकाये बिलों पर OTS के तहत छूट चल रही है, जायें, कुछ देकर आयें और सम्भावित लाभ पायें।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA..