
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राममंदिर-बाबरी मस्जिद (Rammandir Babri Masjid) विवादित परिसर से यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) का दावा खारिज कर दिया. सवाल है कि आखिर किस आधार पर मुस्लिम पक्ष का दावा खारिज हुआ.
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद (Rammandir Babri Masjid Dispute) पर फैसला सुनाकर अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया है. कोर्ट ने विवादित जमीन रामलला विराजमान को दी है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से ट्रस्ट बनाकर मंदिर का निर्माण करने को कहा है. विवादित परिसर से सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. हालांकि कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में किसी दूसरी जगह पर 5 एकड़ जमीन देने को कहा है. 2.27 एकड़ की विवादित जमीन पर सरकार का कब्जा होगा.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में विवादित परिसर के एक तिहाई हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया था. सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा किस आधार पर खारिज हुआ? सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इसे समझने की कोशिश करते हैं.
किस आधार पर मुस्लिम पक्ष का खारिज हुआ दावा
कोर्ट ने अपने फैसले में कुछ बड़ी बातें कही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा विचार करने योग्य है लेकिन एएसआई की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता. एएसआई की रिपोर्ट से पता चलता है कि खुदाई में मिला ढांचा गैर इस्लामिक था. हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि एएसआई ने ये नहीं कहा है कि विवादित परिसर में मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई.
कोर्ट ने कुछ बिंदुओं पर गौर करने के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज किया. पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जबकि मुसलमानों ने विवादित परिसर से कभी कब्जा नहीं खोया, वो परिसर पर प्रतिकूल कब्जे (adverse possession) के अधिकार का दावा नहीं कर सकते. अब सवाल है कि adverse possession या प्रतिकूल कब्जा है क्या?
सुप्रीम कोर्ट के सामने ये सवाल आया कि क्या सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित परिसर पर मालिकाना हक का दावा adverse possession के आधार पर कर रहा है. adverse possession किसी भी प्रॉपर्टी पर शत्रुतापूर्ण कब्जा है, इस स्थिति में प्रॉपर्टी पर कब्जा लगातार, बिना किसी व्यवधान के शांतिपूर्ण रहना चाहिए.
मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि मस्जिद का निर्माण 400 साल पहले बाबर ने करवाया था. अगर ये मान भी लिया जाए कि मस्जिद का निर्माण उस जगह पर किया गया था, जहां पहले मंदिर बना था, फिर भी मुसलमानों का लंबे वक्त तक उस जगह पर कब्जा रहा था. मस्जिद के बनने से लेकर उसके विध्वंस तक. मुस्लिम पक्ष adverse possession के आधार पर विवादित परिसर पर दावा कर रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के इस दावे को खारिज कर दिया. यहां तक की इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में दो जजों की यही राय थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में जस्टिस डीवी शर्मा ने कहा था कि विवादित परिसर पर मुस्लिम पक्ष adverse possession के आधार पर कब्जे का दावा नहीं कर सकते. क्योंकि ये खुली जगह थी और मुसलमानों के साथ कोई भी आदमी उस जगह पर जा सकता था. कोर्ट ने कहा कि लंबे वक्त तक कब्जा करके रखने का मतलब ये नहीं है कि ये प्रतिकूल कब्जे के दायरे में आता हो.
वहीं हिंदू पक्ष इस बात को साबित करने में कामयाब रहा कि विवादित परिसर के बाहरी इलाके में वो लगातार पूजा अर्चना करते रहे हैं. विवादित परिसर के अंदरुनी हिस्से पर विवाद बना रहा. हिंदू और मुस्लिम पक्ष अपने-अपने दावे कर रहा था.
यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपने दावे में कहा था कि इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा असली पक्षकार हैं. रामलला विराजमान का दावा 1989 में सामने आया. बोर्ड ने निर्मोही अखाड़े के दावे को भी गलत बताया. मुस्लिम पक्ष का कहना था कि विवादित परिसर के आसपास जिस जमीन का अधिग्रहण हुआ है, बोर्ड उस पर अपना दावा नहीं जता रहा है. वहां पर हिंदू पक्ष पूजा अर्चना कर सकते हैं.
मुस्लिम पक्ष राम चौबारा वाले इलाके पर दावा नहीं कर रहे थे. बोर्ड का कहना था कि वो मस्जिद का फिर से निर्माण कर उसे 6 दिसंबर 1992 के पहले वाले हालात में लाना चाहते हैं. हालांकि सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिए.